कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Saturday, 4 September 2021

ये शहर

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छोड़िए भी, शहर से बेहतर थी मेरी गली। न दिन का पता, न खबर शाम की, जिन्दगी, सिर्फ यहाँ नाम की, कितनी अधूरी, हर भोर,  और, अधूरी सी, हर शाम हो च...
Tuesday, 2 June 2020

गौण

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वो, जो गौण था! जरा, मौन था! वो, तुम न थे, तो वो, कौन था? मंद सी, बही थी वात, थिरक उठे थे, पात-पात, मुस्कुरा रही, थी कली, सज उठी, थी गली, उन ...
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Sunday, 19 January 2020

यूँ बन्दगी में

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यूँ बन्दगी में..... जरा सा, सर झुका लेना, ऐ हवाओं, गुजरना, जब मेरी गली से! ऐ हवाओं! झूल जाती हैं पत्तियाँ, शाखें, टूट जाते हैं यहाँ,...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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