कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 12 February 2024

दास्तां

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ना थी खबर, ये दो किनारे हैं अलग, सर्वथा, समानांतर और पृथक, पाट पाएं, कब इन्हें, गुजरती सदी और उम्र की नदी, अब जो है ये इल्जाम.... न ये था पत...
Wednesday, 10 August 2016

उभरते जख्म

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शब्दों के सैलाब उमरते हैं अब कलम की नींव से..... जख्मों को कुरेदते है ये शब्दों के सैलाब कलम की नोक से..... अंजान राहों पे शब्दों ने ब...
Wednesday, 24 February 2016

मैं सीधी राह का राही

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राह मुड़ती भी है कहीं, मुझको ये पता न था, तंग राहों होकर ये दिल, आज तक गुजरा न था, चाल कैसी चल रहे दोस्त, मुझको ये पता न था, मैं सीध...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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