कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Showing posts with label टीस. Show all posts
Showing posts with label टीस. Show all posts
Friday, 4 March 2022

जीवटता

›
सूखी नहीं हैं,  ये शाखें, अभी.... खुद ही, खिल उठेंगी, ये फिर सँवर कर! सूखी नहीं हैं, ये शाखें, अभी.... शायद, लम्बा है जरा, पतझड़ों का ये मौस...
6 comments:
Saturday, 11 September 2021

टीस

›
आसान कहाँ, भावों को अभिव्यक्ति देना... यूँ, मूक मनोभावों को, सुन लेना! अर्थहीन सभी लगते, यूँ, चेहरे सारे, टिमटिम से, नैनों के दो तारे, अपलक,...
7 comments:
Saturday, 21 March 2020

बिन तुम्हारे

›
सो गए, अरमान सारे,  दिन-रात हारे, बिन तुम्हारे! अधूरी , मन की बातें,  किसको सुनाते, कह गए, खुद आप से ही, बिन तुम्हारे! ...
14 comments:
›
Home
View web version

About Me

My photo
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Chennai, Tamilnadu, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
View my complete profile
Powered by Blogger.