कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 24 March 2020

अद्भुत कोरोना

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अद्भुत है, कोरोना! शायद, जरूरी है, इक डर का होना! कर-बद्ध, जुड़े रब से हम, मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर है सूना, है ये स्वार्थ,  या प्र...
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Saturday, 15 April 2017

भरम वहम

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इक भरम सा हुआ मन को, चोरी चोरी चुपके किन्ही बातों से जरा डर गए वो, वहम है ये मेरा या हकीकत है कोई वो! शीतल सी कोई पवन है वो, या चिंगार...
Sunday, 10 April 2016

रात

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डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर! वो रात के साए, खामोश गुजरते रहे, लगी रही बस एक चुप सी, सन्नाटे मगर गुनगुनाते रहे रात भर। ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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