कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 15 September 2022

शब की परछाईं

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रैन ढ़ले, सब ढ़ल जाए, शब की, हल्की सी परछाईं,  नैन तले, रह जाए! तमस भरा, आंचल, रचता जाए, नैनों में काजल, उभरता, तम सा बादल, बाहें खोल, बुलाए...
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Sunday, 15 November 2020

गहरी रात

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कितनी गहरी, ये रात! दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात! इक दीप जला है, घर-घर, व्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा, मानव, सपनों का मारा, कितना बेचारा, च...
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Thursday, 24 August 2017

भादो की उमस

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दुरूह सा क्युँ हुआ है ये मौसम की कसक? सिर्फ नेह ही तो ..... बरसाए थे उमरते गगन ने! स्नेह के.... अनुकूल थे कितने ही ये मौसम! क्युँ त...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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