कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 15 December 2020

आ भी जाओ

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आ भी जाओ कि अबकी बहार आए! कोई खेल कैसे, अकेले ही खेले! कोई बात कैसे, खुद से कर ले अकेले! तेरे बिन ये मेले, मुझको न भाए! आ भी जाओ कि अबकी बहा...
19 comments:
Saturday, 19 November 2016

हुई है शाम

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हुई है शाम, प्रिये अब तुम गुनगुनाओ........! लबों से बुदबुदाओ, तराने प्रणय के गाओ, संध्या किरण की लहर पर, तुम झिलमिलाओ, फिर न आएगी लौट...
Thursday, 17 November 2016

तराना प्रणय का

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सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का.... गाएँ कैसे इसे हम, अब तुम ही हमें ये बताना, ढ़ल रही है शाम, तुम सुरमई इसे बनाना...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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