आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
कोई खेल कैसे, अकेले ही खेले!
कोई बात कैसे, खुद से कर ले अकेले!
तेरे बिन ये मेले, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
फागुन भी हारे, खो गए रंग सारे,
नैन, तुझको ना बिसारे, उधर ही निहारे,
तुम बिन ये रंग, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
बेरंग से ये फूल, तकती हैं राहें,
चुप-चुप सी कली, तुझको ही पुकारे,
रंग ये उदास, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
सूनी सी पड़ी, कब से ये गलियाँ,
गई जो बहारें, फिर न लौट आई यहाँ,
विरान गलियाँ, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
वो, कल के तराने, न होंगे पुराने,
ले आ वही गीत, वो ही गुजरे जमाने,
ये नए से तराने, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
जा कह दे, उन बहारों से जाकर,
वो ही तन्हाई में, गुम न जाए आकर,
ये लम्हात तन्हा, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
भूले कोई कैसे वो सावन के झूले,
कोई दूर कैसे, खुद से, रह ले अकेले!
बूंदें! ये तुम बिन, मुझको न भाए!
आ भी जाओ कि अबकी बहार आए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)