कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Tuesday, 27 February 2024

निशा के पल

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निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा, निशांत पलों को, आराम जरा! चहक कर, बहकेगी निशिगंधा, और, जागेंगे निशाचर, रह-रह कर, महकेंगे स्तब्ध पल, ओढ...
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Monday, 7 September 2020

चाँद चला अपने पथ

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वो चाँद चला, छलता, अपने ही पथ पर! बोल भला, तू क्यूँ रुकता है? ठहरा सा, क्या तकता है? कोई जादूगरनी सी, है वो  स्निग्ध चाँदनी, अन्तः त...
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Tuesday, 19 September 2017

निशिगंधा

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घनघोर निशा, फिर महक रही क्युँ ये निशिगंधा? निस्तब्ध हो चली निशा, खामोश हुई दिशाएँ, अब सुनसान हो चली सब भरमाती राहें, बागों के भँवरे भ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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