कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 1 January 2021

नव-परिचय

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हाथ गहे, अब सोचे क्या! ओ अपरिचित! माना, अपरिचित हैं हम-तुम, पर, ये कब तक? कुछ पल, या कि सदियों तक! देखो ना, तुम आए जब, द्वार खुले थे सब! सब्...
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Sunday, 10 March 2019

अपरिचित या पूर्व-परिचित

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अपरिचित हो, या हो पूर्व परिचित तुम! स्वप्न सरीखे , क्यूँ लगते हो तुम? ऐ अपरिचित, कौन हो, कहो ना! कौन हो तुम? हो जाने-पहचाने, या अ...
18 comments:
Thursday, 28 April 2016

अपरिचित अपना सा

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परिचित ही था मेरा वो, अपरिचित मुझको कब था वो! यह कैसा परिचय, एक अपरिचित शख्स से, ओझल है जो अबतक परिचय की नजरों से, कल्पना की सतर...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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