कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Sunday, 21 January 2018

आवाज न देना

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ऐ भूली सी यादें, आवाज न देना तुम कभी.... सदियों की नीरवता से, मैं लौटा हूँ अभी अभी । सदियों तक था तुझमें ही अनुरक्त मै, पाया ही क्य...
Saturday, 13 January 2018

अलाव

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रात भर जलती रही थी उसके मन की अलाव... नंगे बच्चों की भूख, तड़प की पीड़ा, माथे पे शिकन, आँखों में जलन, काँपता तन, सुलगाती रही उस मन में ...
Thursday, 23 November 2017

अरुचिकर कथा

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कोई अरुचिकर कथा, अंतस्थ पल रही मन की व्यथा, शब्दवाण तैयार सदा.... वेदना के आस्वर, कहथा फिरता, शब्दों में व्यथा की कथा? पर क्युँ कोई चुभते ती...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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