कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 31 October 2019

उम्मीद

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हरी है उम्मीद, खुले हैं उम्मीदों के पट! विपत्तियों के, ऊबते हर क्षण में, प्रतिक्षण, जूझते मन में, मंद पड़ते, डूबते उस प्रकाश-किरण में...
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Tuesday, 4 December 2018

बीता कौन, वर्ष या तुम

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बीता है आखिर कौन? क्या समय? या तुम? कुछ पल मेरे दामन से छीनकर, स्मृतियों की कितनी ही मिश्रित सौगातें देकर, समय से आँख मिचौली करता, ब...
Saturday, 4 November 2017

जलता दिल

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राख! सभी हो जाते हैं जलकर यहाँ, दिल ये है कि जला... और उठा न कहीं भी धुँआ! है जलने में क्या? बैरी जग हुआ दिल जला! चित्त चिढा, मन क...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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