कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 14 April 2017

कुछ कदम और

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साँस टूटने से पहले कुछ कदम मैं और चल लूँ, मंजिलों के निशान बुन लूँ, कांटे भरे हैं ये राह सारे, कंटक उन रास्तों के मैं चुन लूँ, बस ...
Wednesday, 8 June 2016

प्रशस्त प्रखर मंजिल

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क्षितिज को निहार तू, विस्तृत जरा आयाम कर, विशाल सोंच को बना, मन की गगन का विस्तार कर, प्रतिभा की चाँदनी से, आसमाँ में प्रकाश भर, क्षित...
Tuesday, 5 April 2016

यादें

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प्रशस्त हो रही सामने संथ्या जीवन की, कुछ भीनीं यादें ख्यालों में पल रही सपनों सी, सपने ही होते वो जो सच ना बन पाते, बोझल होती साँसों मे...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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