कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Wednesday, 12 September 2018

यूँ भी होता

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यूँ भी होता............ मन के क्षितिज पर, गर कहीं चाँद खिला होता, फिर अंधेरों से यहाँ, मुझको न कोई गिला होता! अनसुना ना करता, मन ...
Monday, 5 September 2016

ऐ परी

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खूबसूरत सी ऐ परी, तू जुदा कभी मुझ से न होना..... फासलों से तुम यूॅ न गुजरना, ये फासले रास न आएंगे तुझको, कुछ कदम साथ इस जिन्दगी के भी च...
Tuesday, 30 August 2016

माधूर्य

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इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.... बोझिल सा हो जब ये मन, थककर जब चूर हो जाता है ये बदन, बहती हुई रक्त शिराओं में, छोड़ जाती ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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