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Wednesday, 12 September 2018

यूँ भी होता

यूँ भी होता............

मन के क्षितिज पर,
गर कहीं चाँद खिला होता,
फिर अंधेरों से यहाँ,
मुझको न कोई गिला होता!

अनसुना ना करता,
मन मेरे मन की बातें सुनता,
बातें फिर कोई यहाँ,
मुझसे करता या न करता!

हो मन में जो लिखा,
गर कोई कभी पढ़ लेता,
लफ़्ज़ को यूँ शब्दों में,
ढ़लकर ना ही जलना होता!

करीब रहकर भी,
न फासला मिटा होता,
बेवजह गले मिल ले,
ऐसा न गर कोई मिला होता!

दिल तक पथ होता,
दूरी न ये तुम तक होता
थकता न ये पथिक,
मुश्किल भरा ना पथ होता!

गम से मन टूटता,
मन गैरों के गम में ही रोता,
भूले से भी गम कोई,
फिर दुश्मन को भी न देता!

यूँ भी होता..........

Monday, 5 September 2016

ऐ परी

खूबसूरत सी ऐ परी, तू जुदा कभी मुझ से न होना.....

फासलों से तुम यूॅ न गुजरना,
ये फासले रास न आएंगे तुझको,
कुछ कदम साथ इस जिन्दगी के भी चलना,
राहत के कुछ पल साथ मेरे जी लेना।

खूबसूरत सी ऐ परी, तू गुमशुदा खुद से न होना.....

इन फासलों में है जीवन के अंधेरे,
राहों के शूल चुभ जाएंगे पावों में तेरे,
कुछ रौशनी में इस जिन्दगी के भी चलना,
उजाले यादों के इन आँखों में भर लेना।

खूबसूरत सी ऐ परी, तू नाराज खुद से न होना...
साया बने तू मेरी ऐ परी, जुदा कभी मुझसे न होना.....

Tuesday, 30 August 2016

माधूर्य

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग....

बोझिल सा हो जब ये मन,
थककर जब चूर हो जाता है ये बदन,
बहती हुई रक्त शिराओं में,
छोड़ जाती है कितने ही अवसाद के कण,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मन को देती हैं माधूर्य के कितने ही एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....

अनियंत्रित जब होती है धड़कन,
उलझती जाती है जब हृदय की कम्पन,
बेवश करती है कितनी ही बातें,
राहों में हर तरफ बिखरे से दिखते है काँटे,
तब आती है फासलों से चलकर यादें,
मखमली वो छुअन देती है माधूर्य के एहसास,
हाँ, तब उस पल तुम होती हो मेरे कितने ही पास....

इन फासलों में पनपता है माधूर्य का अनुराग.....