कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 3 June 2016

वादियों में कहीं

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कहीं दूर तन्हा हसीन वादियों में, गा रहा है ये दिल अब तन्हाईयों के गीत, चौंक कर जागता है मन बावरा, सोचता यहीं कही पे है मेरे मन का मीत।...
Monday, 21 March 2016

एक टुकड़ा नीरद

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एक टुकड़ा नीरद, मीनकेतु सा छाया मन पर, चातक मन बावरा उस नीरद का, उमर घुमर वो नीरद वापस आता इस मन पर, मनसिज सा बूँद बन बिखरा ये मन पर। ...
Thursday, 10 March 2016

दो तीरों के बीच

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नदी के तीरे खड़ा, पर ढ़ूंढ़ता किनारा, कैसी है यह दुविधा, कैसी जीवनधारा, दो तीरों के बीच, भँवर सा मन बावरा, डगमग जीवन की नैया ढ़ूंढ़ता सह...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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