Showing posts with label बावरा. Show all posts
Showing posts with label बावरा. Show all posts

Friday, 3 June 2016

वादियों में कहीं

कहीं दूर तन्हा हसीन वादियों में,
गा रहा है ये दिल अब तन्हाईयों के गीत,
चौंक कर जागता है मन बावरा,
सोचता यहीं कही पे है मेरे मन का मीत।

कहीं दिल की लाल सरिताओ में,
खिल उठ्ठे हैं जैसे असंख्य कमल के फूल,
कह रहा है मुझसे दिल ये बावरा,
धड़केगा एक दिन वो पत्थर भी जरूर।

जैसे फूल खिल उठते हैं पत्थरों पे,
ताप से पिघलतेे है मोम के ये सुलगते दिए,
हो जाएंगे वो भी ईश्क मे बावरा,
मेेरी तन्हा रातों में कभी वो जलाएंगे दिए।

ये वादियाँ हैं इंतजार की फूल के,
झूम उठते हैं जो इन तन्हाईयों के गीत पे,
तन्हा लम्हों में छुपा है वो बावरा,
इन वादियों में कहीं वो इंतजार में प्रीत के।

Monday, 21 March 2016

एक टुकड़ा नीरद

एक टुकड़ा नीरद, मीनकेतु सा छाया मन पर,
चातक मन बावरा उस नीरद का,
उमर घुमर वो नीरद वापस आता इस मन पर,
मनसिज सा बूँद बन बिखरा ये मन पर।

आज कहीं गुम वो मनसिज नीरद,
परछाई खोई कहीं बेचैन सी झील मे उसकी,
हलचल इस जल में आज कितनी,
सूख चुकी है शायद उस नीरद की बूँद भी?

नीरद आशाओं के कल फिर वापस आएंगे,
मन के झील पर ये फिर झिलमिलाएंगे,
तस्वीर नीरद की नई उभरेगी परछाई बन,
मनसिज नीरद की बूँदे फिर बरस जाएंगे मन पर।

Thursday, 10 March 2016

दो तीरों के बीच

नदी के तीरे खड़ा, पर ढ़ूंढ़ता किनारा,
कैसी है यह दुविधा, कैसी जीवनधारा,
दो तीरों के बीच, भँवर सा मन बावरा,
डगमग जीवन की नैया ढ़ूंढ़ता सहारा।

दो तीर जीवन के, सुख-दु:ख का मेला,
पल खुशियों के कम, लेकिन अलबेला,
किस दुविधा में तू, क्युँ तू यहाँ अकेला,
ढ़ूंढ़ ले अपनी खुशियाँ,भूल जा झमेला।

तीर किनारे नाव कई, दूर नहीं तेरा गाँव,
तू चुन अपनी नाव, देख फिसले न पाँव,
राह कठिन थोड़ी सी,संयम रख ले ठाँव,
रस्ते कट ही जाएँगे, तू पा जाएगा गाँव।