कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 9 August 2021

बहता किनारा

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पिघलते सांझ सा, बहता किनारा, कब, हो सका हमारा! पर, गुजारे हैं, पल, सारे यहीं, रख चले, बुनकर, सपनों के सारे, धागे यहीं, पर, देखती कहाँ, पलट क...
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Friday, 8 May 2020

उड़ चले विहग

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उड़ चले विहग, क्षितिज पे कहीं दूर! उन्हीं, असीम सी, रिक्तताओं में, हैं कुछ, ढ़ूंढ़ने को मजबूर, मुट्ठी भर आसमां,  कहीं गगन पे दूर...
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Sunday, 3 November 2019

पराई साँस

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मन-मर्जी ये साँस की, वो चले या रुके! हूँ सफर में, साँसों के शहर में! इक, पराए से घर में! पराई साँस है, जिन्दगी के दो-पहर में! चल रहा...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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