कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 18 August 2022

परिचय

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क्षय होते, इस काया से, परिचय क्या करना! गल जाना है इक दिन, मिल जाना है माटी में, फिर, पहने फिरते हो क्यूं,माया का गहना! क्षय होते, इस काया स...
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Saturday, 26 December 2020

कठपुतली

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तू, क्यूँ खुद पर, इतना करे गुमान! देने वाला वो, और लेने वाला भी वो ही, बस, ये मान!  क्यूँ बनता अंजान! ढ़ल जाते हैं दिन, ढ़ल जाती है ये शाम, ...
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Sunday, 6 March 2016

कर्ण सा दुर्भाग्य किसी का न हो!

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हाय! ये भाग्य कैसा पाया था उस कुन्तीपुत्र कर्ण नें? कोख मिला कुन्ती का किन्तु, कुन्ती पुत्र न कहलाया, जिस माता ने जन्म दिया, उसने ही उसक...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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