कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 24 May 2021

संबल

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एकाकी, मैं कब था! कुछ यादें थी, यूँ, मैं था, ज्यूँ, संग मेरे मेरा रब था! अनवरत, चला वक्त का रथ, रूठ चले कितने, अपने, छूट चले कितने, उनकी ही,...
25 comments:
Sunday, 5 June 2016

बहारें

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अपलक देखता ही रहा मैैं और बहारें गुजरती गईं। खूबसूरत से ये नजारे कलियाँ खिली खिली, हरे भरे ये बाग सारे पत्तियाँ सब मुस्कुराती मिली, पंछ...
Monday, 4 April 2016

असंख्य फूल

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काश! मन की वादियों में फूल खिलते हजार! हृदय की धड़कनें कह रहीं हैं बार-बार, कहीं साहिलों पर खड़ा मन है कोई बेकरार, गुजर रहें वो फासलों ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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