कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 19 February 2018

एकाकी वेला

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एकाकी से इस वेला में, मन कितना अकेला है... ये रात है ! है निर्जन सा ये दूसरा पहर.... नीरवता है फैली सी, बिखरी है खामोशी, चुप सी है रज...
Tuesday, 30 August 2016

गोधुलि

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गोधुलि, मिटा रहे ये फासले रात-दिन की दरमियाँ..., गोधुलि, रहस्यमई है ये वेला, मुखर होती ये चुप सी रात, और दिवस के अवसान की ये वेला, ध...
Thursday, 19 May 2016

यादों की एकान्त वेला

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मन एकान्त सा होता नही यादों में जब होते वो संग, आह ! यह एकान्त वेला, फिर याद लेकर उनकी आई...! अतिशय उलझा है मन फिर ये कैसी रानाई, घ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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