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Monday, 19 February 2018

एकाकी वेला

एकाकी से इस वेला में, मन कितना अकेला है...

ये रात है ! है निर्जन सा ये दूसरा पहर....
नीरवता है फैली सी, बिखरी है खामोशी,
चुप सी है रजनीगंधा, गहरी सी ये उदासी,
चुपचाप बुझ-बुझ कर, जलते वो दीपक,
गुमसुम चुप-चुप, शांत बैठा वो शलभ...
सूनापन है व्याप्त, बस यादों का मेला है....

एकाकी से इस वेला में, मन कितना अकेला है...

बदराए से नभ पर, एकाकी सा इक तारा,
नीरव सी इन रातों मे, इक वो ही है बेचारा,
जागा है बस वो ही, सो रहा ये जग सारा,
वो किसको याद करे, उसका कौन सहारा,
लुटाकर सब कुछ, खुद को ही वो हारा...
एकाकी सी इन राहों में, शायद वो भूला है!

एकाकी से इस वेला में, मन कितना अकेला है...

रातों कें साए में, व्याप रहा क्यूं सूनापन?
यादों के इस घन में, कैसा ये एकाकीपन?
पहरे हैं यादों के, मंडराते से यादों के घन,
फिर क्यूं तारे, गिनता है ये निशाचर मन?
निशा पहर किसने, गीत विरह के छेड़ा...
कैसी सूनी है रात, तन्हा कितनी ये वेला है!

एकाकी से इस वेला में, मन कितना अकेला है...

Tuesday, 30 August 2016

गोधुलि

गोधुलि, मिटा रहे ये फासले रात-दिन की दरमियाँ...,

गोधुलि, रहस्यमई है ये वेला,
मुखर होती ये चुप सी रात,
और दिवस के अवसान की ये वेला,
धुमिल सी होती ये जिन्दगी,
डूबते सी पलों में ख्वाहिशों की ये वेला,
लिए आगोश में उजालों को,
रात की आँचल ने अब दामन है खोला,
फासले अब क्युँ रहें रात और दिन की दरमियाँ...,

गोधुलि, मिलन की है ये वेला,
घौसलों में पंछियों के लौटने की ये वेला,
लाजवन्ती की पत्तियों के सिमटने की ये वेला,
बीज आश के, निराश पलों मे बोने की वेला,
सुरमई सांझ संग है ये झूमने की वेला,
कुछ सुख भरे पलों को जीने की ये वेला,
बातें दबी सी फिर से कहने की ये वेला,
फासले अब क्युँ रहें रात और दिन की दरमियाँ...,

गोधुलि, मिटते फासलों की ये वेला,
रात की रानी लगी फिर विहसने,
खुश्बुओं से दूरियों को बींधने की ये वेला,
कलकल चमकती ये नदिया की धारा,
मखमली सी चाँदनी में डूबने की ये वेला,
खोए हैं अब सपनों में साथ हम,
वयस्त सी जिन्दगी में फुर्सत की है ये वेला,
फासले अब क्युँ रहें रात और दिन की दरमियाँ...,

गोधुलि, मिटा रहे ये फासले रात-दिन की दरमियाँ...,

Thursday, 19 May 2016

यादों की एकान्त वेला

मन एकान्त सा होता नही यादों में जब होते वो संग,
आह ! यह एकान्त वेला, फिर याद लेकर उनकी आई...!

अतिशय उलझा है मन फिर ये कैसी रानाई,
घटाएँ उनके यादों की बदली सी इस मन पर छाई,
निस्तब्ध इस एकान्त वेला में ये कैसी है तन्हाई....?

यादों में पल पल वो झूलों से आते लहराकर,
मुखरे पर वही भीनी सी मंद मुस्कान बिखराकर,
कर जाते वो निःशब्द मुझको अपनाकर....!

लहराते जुल्फों की छाँवो में ही रमता है ये मन,
उनकी यादों की गाँवों में ही बसता है अब ये मन,
मन चल पड़ता उस ओर पाते ही एकान्त क्षण....!

तन्हाई डसती नहीं उनकी यादें जब हो संग,
मन एकान्त सा होता नही यादों में जब होते वो संग,
काश! क्षण उम्र के यूँ ही गुजरे यादों में उनकी संग....!