कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Friday, 10 December 2021

रिक्त क्षणों का क्या?

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उन रिक्त क्षणों का क्या? कंपन, गुंजन, खनखन, बस कहने को हैं, कलकल, छलछल, ये पल, बहती ये नदियां, बस बहने को हैं, सिक्त हुईं, फिर छलक पड़ी, दो ...
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Thursday, 18 October 2018

उद्वेलित हृदय

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मेरे हृदय के ताल को, सदा ही भरती रही भावों की नमीं, भावस्निग्ध करती रही, संवेदनाओं की भीगी जमीं..... तप्त हवाएं भी चली, सख्त ...
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Wednesday, 16 August 2017

भावस्निग्ध

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कंपकपाया सा क्युँ है ये, भावस्निध सा मेरा मन? मन की ये उर्वर जमीं, थोड़ी रिक्त है कहीं न कहीं! सीचता हूँ मैं इसे, आँखों में भरकर नमीं, ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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