कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 28 March 2016

साहिलों से भटकी लहर

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इक लहर भटकी हुई जो साहिलों से, मौज बनकर भटक रही अब इन विरानियों में, अंजान वो अब तलक अपनी ही मंजिलों से। सन्नाटे ये रात के कटते नही हैं...
Wednesday, 17 February 2016

उम्मीद की शाख

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नाउम्मीद कहाँ वो, उम्मीद की शाख पर बैठा अब भी वो। एक उम्मीद लिए बैठा वो मन में, दीदार-ए- तसव्वुर में न जाने किसके, हसरतें हजार उस दि...
Tuesday, 9 February 2016

सिसकी की प्रतिध्वनि

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रूक रूक कर गूंजती एक प्रतिध्वनि, रह रह कर सुनाई देती कैसी सिसकी, कौन सिसक रहा आधी रात को वहाँ? किस वेदना की है करुण पुकार यह, ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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