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Monday, 28 March 2016

साहिलों से भटकी लहर

इक लहर भटकी हुई जो साहिलों से,
मौज बनकर भटक रही अब इन विरानियों में,
अंजान वो अब तलक अपनी ही मंजिलों से।

सन्नाटे ये रात के कटते नही हैं काटते,
मीलों है तन्हाईयाँ जिए अब वो किसके वास्ते,
साहिलों का निशाँ दूर उस लघु जिन्दगी से।

सिसकियों से पुकारती साहिल को वो दूर से,
डूबती नैनों से निहारती प्रियतम को मजबूर सी,
खो गई आवाज वो अब मौज की रानाईयों में।

इक लहर वो गुम हुई अब समुंदरों में,
मौज असंख्य फिर भी उठ रही इन समुंदरों में,
प्राण साहिल का भटकता उस प्रियतमा में।

पुकारता साहिल उठ रही लहरों को अब,
आकुल हृदय ढूंढता गुम हुई प्रियतमा को अब,
इंतजार में खुली आँखें हैं उसकी अब तलक।

टकरा रही लहर-लहर सागर हुई वीरान सी,
चीरकर विरानियों में गुंजी है इक आवाज सी,
तम तमस घिर रहे साहिल हुई उदास सी।

वो लहर जो लहरती थी कभी झूमकर,
अपनी ही नादानियों में कहीं खो गई वो लहर,
मंजिलों से दूर भटकी प्यासी रही वो लहर।

Wednesday, 17 February 2016

उम्मीद की शाख

नाउम्मीद कहाँ वो, उम्मीद की शाख पर बैठा अब भी वो।

एक उम्मीद लिए बैठा वो मन में,
दीदार-ए- तसव्वुर में न जाने किसके,
हसरतें हजार उस दिल की,
ख्वाहिशें सपने रंगीन सजाने की।

एक प्यासा उम्मीद पल रहा वहाँ,
तड़पते छलकते जज्बात हृदय में लिए,
नश्तर नासूर बने उस दिल की,
हसरतें पतंगों सी प्रीत निभाने की।

एक उम्मीद विवश बेचैन वहाँ,
झंझावात सी अनकही अनुभूतियाँ मन में लिए,
निःस्तब्ध पुकार दिल मे उसकी,
चाह सिसकी की प्रतिध्वनि सुनाने की।

नाउम्मीद कहाँ वो, एक उम्मीद लिए बैठा अब भी वो।

Tuesday, 9 February 2016

सिसकी की प्रतिध्वनि

रूक रूक कर गूंजती एक प्रतिध्वनि,
रह रह कर सुनाई देती कैसी सिसकी,
कौन सिसक रहा आधी रात को वहाँ?

किस वेदना की है करुण पुकार यह,
रह रह कर उठती यह चित्कार कैसी,
छनन छन टूटने की आवाज है कैसी?

क्रंदन किसी बाला की है यह शायद,
दुखता है मन उस बाला की वेदना से,
क्या आसमान टूटा है उस बाला पे?

अनमनी चल रही हैं क्यूँ साँसें उसकी,
अन्तस्थ छलनी कर गई यह सिसकी,
हृदय-विदारक प्रतिध्वनि गूंजती क्युँ?