कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Monday, 2 March 2020

कैसी फगुनाहट

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संग हो, उम्मीदों की आहट! तुम, तब ही आना, ऐ फगुनाहट! खून-खून, है ये फागुन, धुआँ-धुआँ, उम्मीदें, बिखरे, अरमानों के चिथरे, चोट ...
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Thursday, 21 March 2019

होली 2019

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ऐसे न मैं गुनगुनाता, न रंग कोई, आँखोँ पे सजाता, गर मेरे ख्वाब, आँचल में तुम ना संजोते! ऐसा ना धा, कभी ये गगन सतरंगा, ऐसा न था, पवन र...
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Sunday, 25 February 2018

फागुन में तुम याद आए

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क्षितिज के आँचल हुए जब लाल, तुम याद आए..... तन सराबोर, हुआ इन रंगों से, तन्हा दूर रहे, कैसे कोई अपनों से? भीगे है मन कहाँ, फागुन के इ...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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