कविता "जीवन कलश"

जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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Thursday, 11 April 2019

संकेत

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प्रथमतः, संकेत मुखर हो, प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो! संकेत बसंत का पाकर, झूमी ये वसुधा, नव श्रृंगार किए पल्लव नें, रसपान क...
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Tuesday, 5 July 2016

कुछ बोल दे बादल

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ओ चिर काल से नभ पर विचरते बादल, इस वसुधा की कण-कण को भिगोते बादल, बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल! क्षार सा खारा जल तू पीता, जिह्...
Tuesday, 16 February 2016

बसंत ने ली अंगड़ाई

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अंजुरी भर भर अाम रसीली मंजराई, वसुधा के कणकण पर छाई तरुनाई, स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई। रूप अतिरंजित कली कली मुस्काई, प...
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पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Berhampore (Murshidabad), West Bengal, India
मैं, एक आम व्यक्ति, बिल्कुल आप जैसा ही। बस लगाव है भावनाओं से, एक जुड़ाव है संवेदनाओं से। महसूस करता हूँ, तो कलम चल पड़ती है और जन्म लेती है, एक नई रचना। मेरी नवीनतम रचनाओं की जानकारी हेतु, आप इस ब्लॉग को फॉलो करें। इसकी सूचना आप मेरे WhatsApp / Contact No. 9507846018 के STATUS पर भी पा सकते हैं।
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