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Thursday, 11 April 2019

संकेत

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संकेत बसंत का पाकर,
झूमी ये वसुधा,
नव श्रृंगार किए पल्लव नें,
रसपान किया भौरों ने,
कूकी कोयल,
गूंजा एक स्वर, जय-जय बसंत की हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संकेत मिला जब सावन का,
करती नृत्य क्रीड़ा,
बरसी झूम-झूमकर बदरा,
भींगी हरित हो वसुधा,
लहलहाए फसल,
गूंजा प्राणों में स्वर, सावन की जय हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

संंकेत, मौन व्योम की भाषा,
जीने की अभिलाषा,
मुखरित चेतना की जिज्ञासा,
लिख जाते हैं दो नैंना,
संकेतों में गजल,
गूंजा है ओम, चराचर व्योम की जय हो!

प्रथमतः, संकेत मुखर हो,
प्रबल कोई आशा, फिर प्रत्युत्तर की हो!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Tuesday, 5 July 2016

कुछ बोल दे बादल

ओ चिर काल से नभ पर विचरते बादल,
इस वसुधा की कण-कण को भिगोते बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

क्षार सा खारा जल तू पीता,
जिह्वा से तेरी बहता बस मीठा सा जल,
बूंदों में तेरी रचती गंगा-जमुना जल,
तू कितना प्यारा कितना अनमोल बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

गम की बोझ से है भरा पड़ा तू,
तम की घोर कालिमा मे ही लिपटा तू,
हर पल टूटा, हर पल बिखरा है तू,
तेरी धीरज से ना कोई अंजान बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

तम रचता मानव तन के अन्दर भी,
गम के काटें चुभते इस मानव तन को भी,
तेरा मीठा जल पीता क्षुधा मिटाने को भी,
मुख से लेकिन छूटते कड़वे ही बोल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

ओ राग अनुराग में लिप्त घुमरते बादल,
ओ मेरे हृदयाकाश पर उड़ते उन्मुक्त बादल,
बोल दे, तू भी कुछ तो दे बोल बादल!

Tuesday, 16 February 2016

बसंत ने ली अंगड़ाई

अंजुरी भर भर अाम रसीली मंजराई,
वसुधा के कणकण पर छाई तरुनाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

रूप अतिरंजित कली कली मुस्काई,
प्रस्फुटित कलियों के सम्पुट मदमाई,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।

कूक कोयल की संगीत नई भर लाई,
मंत्रमुग्ध होकर भौंरे भन-भन बौराए,
स्वागत है बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।