मन जरा सा, अशान्त हो चला था,
उधर, वर्षान्त हो चला था!
शिखर, दूर था अभी,
मुकर सी गई थी, राह सारी अजनबी,
छूटने लगी थी, वक्त की, कड़ी,
तलाशता, खुद को मैं,
राह में खड़ा था!
मन जरा सा, अशान्त हो चला था,
उधर, वर्षान्त हो चला था!
बेफिक्र, ढ़ला था दिन,
यूं ही, चाल वक्त की, मैं रहा था गिन,
जबकि, ढ़ल चली थी रात भी,
थे, वो सितारे बेखबर,
मुग्ध मैं पड़ा था!
मन जरा सा, अशान्त हो चला था,
उधर, वर्षान्त हो चला था!
घाटियों सा, ये सफर,
फिर, करनी थी शुरु, संकरी राह पर,
थे कहां, कल के वो हमसफ़र,
उन, बेड़ियों से भला,
मुक्त मैं कहां था!
मन जरा सा, अशान्त हो चला था,
उधर, वर्षान्त हो चला था!
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