Wednesday 31 August 2016

अरुणोदय


अरुणोदय की हल्की सी आहट पाकर,
लो फिर मुखरित हुआ प्रभात,
किरणों के सतरंगी रंगों को लेकर,
नभ ने नव-आँचल का फिर किया श्रृंगार।

मौन अंधेरी रातों के सन्नाटे को चीरकर,
सूरज ने छेरी है फिर नई सी राग,
कलरव कर रहे विहग सब मिलकर,
कलियों के संपुट ने किया प्रकृति का श्रृंगार।

नव-चेतन, नव-साँस, नव-प्राण को पाकर,
जागा है भटके से मानव का मन,
नव-उमंग, नव-प्रेरणा, नव-समर्पण लेकर,
आँखों में भर ली है उसने रचना का नया श्रृंगार।

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