कोई गूढ़ सी, वो बात है......
उनींदी सी, खुली पलक,
विहँसती, निहारती है निष्पलक,
मूक कितना, वो फलक!
छुपाए, वो कोई,
इक राज है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
लबों की, वो नादानियाँ,
हो न हो, तोलती हैं खामोशियाँ,
सदियों से वो सिले लब!
दबाए, वो कोई,
इक बात है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
हो प्रेम की, ये ही भाषा,
हृदय में जगाती, ये एक आशा,
यूँ ना धड़कता, ये हृदय!
बजाए, वो कोई,
इक साज है!
कोई गूढ़ सी, वो बात है......
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)