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Monday 27 April 2020

हर बार - (1200वाँ पोस्ट)

बाकी, रह जाती हैं, कितनी ही वजहें,
कितने ही सफहे,
कुछ, लिखने को हर बार!

कभी, चुन कर, मन के भावों को,
कभी, सह कर, दर्द से टीसते घावों को,
कभी, गिन कर, पाँवों के छालों को,
या पोंछ कर, रिश्तों के जालों को,
या सुन कर, अनुभव, खट्ठे-मीठे, 
कुछ, लिखता हूँ हर बार!

फिर, सोचता हूँ, हर बार,
शायद, फिर से ना दोहराए जाएंगे, 
वो दर्द भरे अफसाने,
शायद, अब हट जाएंगे, 
रिश्तों से वो जाले,
फिर न आएंगे, पाँवों में वो छाले,
उभरेगी, इक सोंच नई,
लेकिन! हर बार,
फिर से, उग आते हैं,
वो ही काँटें,
वो ही, कटैले वन,
मन के चुभन,
वो ही, नागफनी, हर बार!
अधूरी, रह जाती हैं,
लिखने को,
कितनी ही बातें, हर बार!

फिर, चुन कर, राहों के काँटों को,
फिर, पोंछ कर, पाँवों से रिसते घावों को,
फिर, बुन कर, सपनों के जालों को,
देख कर, रातों के, उजालों को,
या, तोड़ कर, सारे ही मिथक,
कुछ, लिखता हूँ हर बार!

फिर भी, रह जाती हैं कितनी वजहें,
कितने ही सफहे,
कुछ, लिखने को हर बार!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday 18 March 2018

अधलिखा अफसाना

बंद पलकों तले, ढ़ूंढ़ता हूं वही छाँव मैं...
कुछ देर रुका था जहाँ, देखकर इक गाँव मैं....

अधलिखा सा इक अफसाना,
ख्वाब वो ही पुराना,
यूं छन से तेरा आ जाना,
ज्यूं क्षितिज पर रंग उभर आना..
और फिर....
फिजाओं में संगीत,
गूंजते गीत,
सुबह की शीत,
घटाओं का उड़ता आँचल,
हवाओं में घुलता इत्र,
पंछियों की चहक,
इक अनोखी सी महक,
चूड़ियों की खनक,
पत्तियों की सरसराहट,
फिर तुम्हारे आने की आहट,
कोई घबराहट,
काँपता मन,
सिहरता ये बदन,
इक अगन,
सुई सी चुभन,
फिर पायलों की वही छन-छन,
वो तुम्हारा पास आना,
वो मुस्कुराना,
शर्म से बलखाना,
वो अंकपाश में समाना,
वापस फिर न जाना,
मन में समाना,
अहसास कोई लिख जाना,
है अधलिखा सा इक वो ही अफसाना....

बंद पलकों तले, ढ़ूंढ़ता हूं वही छाँव मैं...
कुछ देर रुका था जहाँ, देखकर इक गाँव मैं....

Thursday 15 September 2016

अफसाना

लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना....

रुक गया था कुछ देर मैं, छाॅव देखकर कहीं,
छू गई मन को मेरे, कुछ हवा ऐसी चली,
सिहरन जगाती रही, अमलतास की वो कली,
बंद पलकें लिए, खोया रहा मैं यूॅ ही वही,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा तब वो अफसाना....

कुछ अधलिखा सा वो अफसाना,
दिल की गहराईयों से, उठ रहा बनकर धुआॅ सा,
लकीर सी खिंच गई है, जमीं से आसमां तक,
ख्वाबों संग यादों की धुंधली तस्वीर लेकर,
गाने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना.....

कह रहा मन मेरा बार-बार मुझसे यही,
उसी अमलतास के तले, आओ मिलें फिर वहीं,
पुकारती हैं तुझे अमलतास की कली कली,
रिक्त सी है जो कहानी, क्यूॅ रहे अनलिखी,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना....

Sunday 8 May 2016

मुद्दतों गुजरे अफसाने

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

छलता ही रहा हर पल मन उस छलावे में,
भटकता ही रहा हर क्षण बदन उस बहकावे में,
टूटा सा इक दर्पण निकला वो अपना सा लगता था जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

घुँघरू सा बजता था वो दिल के तहखानों में,
पहचाना सा इक शक्ल लगता था वो अन्जानों में,
टूटा है अब मेरा घुँघरू वो, इस दिल में बजता था जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

जाने कितनी बार छला है ये मन इस दुनिया में,
ये पागल दिल भूल जाता है खुद भी को मृगतृष्णा में,
टूटा है अब जाल वो छल का उलझा था इस मन में जो।

मुद्दतों हुए गुजरे उस अफसाने को,
इक झूठ ही था वो, हम सच मान बैठे थे जिसको!

Tuesday 12 January 2016

दिल ढूंढता वो अफसाना

वो इक अफसाना,
सदियों से हृदय मे अंकित,
दिल की वादियों मे फूलों सा लहराता,
तेरी स्पर्श का मीठा अहसास देता,
सुकून मिल जाता।

लगता है जैसे,
कल की ही बात है अभी,
यादों की दृष्टिपटल पर उभर आता,
पलकें मूँद फिर मन को सहलाता,
सुकून मिल जाता।

दिल फिर ढूंढता,
वही हसरतों के खूबसूरत पल,
बेपरवाह हँसी, मधुमय बातों के सिलसिले,
मन की गुफाओं मे कैद वो अफसाना,
दिल को बेचैन कर जाता।

वो इक खूबसूरत अफसाना,
सदियों से दिल की वादियों मे लहराता।