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Friday, 28 November 2025

बिछड़ी पात

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

प्रलय ले आई, छम-छम करती बूंदें,
गीत, कर उठे थे नाद,
डाली से, अधूरी थी हर संवाद,
बस, बह चली वो पात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

मौसम ने दी थी, फीकी सी सौगात,
ठंड पड़े, सारे जज्बात,
छूटी पीछे, रिश्तों की गर्माहट,
करती भी क्या, वो पात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

हंसते वो मौसम, ले आए कैसे ग़म,
सर्वथा, खाली थे दामन,
यूं सर्वदा के लिए, टूटा था मन,
बेरंग, कर गई बरसात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

यूं हंसी किसी की, बन जाए अट्टहास,
आस ही, कर दे निराश,
सर्वथा, अपना भी ना हो पास,
पल दिन के, लगे रात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

मौसम तो भर ही जाएंगे, डाली के ग़म,
वृष्टि ही, लगाएगी मरहम,
समाहित, कर जाएगी हर ग़म
इसी सृष्टि में, हर बात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

दास्तां, इक पल की, बन चला पात,
रहा, भीतर एक उन्माद,
इक सफर अधूरी, डाली से दूरी,
पिघलती, इक जज़्बात!

भीगे से पल में......, 
बिछड़ चली, इक डाली से पात,
निर्मम, कैसी ये बरसात!

Saturday, 15 October 2022

चुभते कांटे

अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...

हरेक अंतराल,
हर घड़ी, पूछते मेरा हाल,
दर्द भरे, वही सवाल,
बिन मलाल!

अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...

उनकी चुभन,
वही, अन्तहीन इक लगन,
हर पल, बिन थकन,
वही छुअन!

अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...

जो, वो न हो,
ये मौसम, ये बारिशें न हों,
सब्रो आलम तो हो,
हम न हों!

अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...

क्यूं, उन्हें बांटें,
मीठी, दर्द की ये सौगातें,
तन्हा डूबती ये रातें,
यूं क्यूं छांटें!

अब अपने से लगते हैं वो चुभते कांटे...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, 24 December 2019

नया इक वर्ष

हर नई सुबह, नए किरण, सूरज लाएगा,
नव रंगों में, ढ़ल क्षितिज,
नव-सवेरा, लाएगा,
नव आश, नव प्राण, नया वर्ष है लाया!

विषाद हुआ या हर्ष, बीत चला इक वर्ष,
नव अवसर, यह ले आया,
मना लो, खुशियाँ,
इक नव-विहान, इक नया वर्ष है आया!

चमक उठी गलियाँ, छूटी हैं फुलझड़ियाँ,
खिल उठी हैं, ये कलियाँ,
गा उठे, पंछी सारे,
लेकर नव सौगात, नया वर्ष है आया!

जो हैं तृष्णा के मारे, हैं जो खुद से हारे,
क्या बदलेगे, वो बेचारे?
जागेंगे, वो सतर्ष?
संभावनाएं अपार, नया वर्ष है लाया!

जगाएगी ये प्यास, तू करले कुछ प्रयास,
कर स्वीकार, हार सहर्ष,
शुरू कर, नव-संघर्ष,
तज मन के विषाद, नया वर्ष है आया!

अचम्भित हूँ, देख कर इनकी निरंतरता,
अंतहीन पथ, यह चलता,
बिन थके, बिन रुके,
मन में प्रवेश किए, नया वर्ष है आया!

मन के पार, वो दस्तक दे रहा द्वार-द्वार,
वो कहता, जी ले हर पल,
राह नई, इक चल,
खुद को ले पहचान, नया वर्ष है आया!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

नववर्ष 2020  की शुभकामनाओं सहित

Wednesday, 6 November 2019

दूर हैं वो

दूर हैं वो, पल भर को, जरा सा आज!
तो, खुल रहे हैं सारे राज!
वर्ना न था, मुझको ये भी पता,
कि, जिन्दा है, मुझमें भी एक एहसास!

थे वो, कल तक, कितने ही पास,
तो, न थी कहीं, कोई कमी,
बस, फिक्र में थी, कहीं वो ही ज़मीं!
रोज, थी अनर्गल सी हजारों बातें,
अनर्थक, बेफिक्र कई जिक्र,
निरर्थक सी, कभी लगती थी जो,
वही थी, अर्थपूर्ण सी सौगातें,
न थी, उनकी ललक,
हर शै, उनकी ही थी झलक,
झंकृत था, हर ईक कोना,
लगता था, जरूरी है कहीं एक घर होना!
खल गई है, जरा सी दूरी,
पर, है जरूरी, पल भर को ये भी दूरी,
ताकि, जगता रहे ये एहसास,
मानव न हो जाए पत्थर,
कोई दूरी, दरमियाँ, न जन्म ले उत्तरोत्तर!

दूर हैं वो, कुछ पल को, जरा सा आज!
तो, मैं मुझको ही, ढूंढ़ता हूँ आज !
वर्ना न था, मुझको ये भी पता,
कि, बचा है, मुझमें भी एक एहसास!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Wednesday, 30 January 2019

सौगातें

ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!

हो उठता हैं, परिभाषित हर क्षण,
अभिलाषित, हो उठता है मेरा आलिंगन,
कंपित, हो उठते हैं कण-कण,
उस ओर ही, मुखरित रहता है ये मन!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

रंग चटक, उनसे लेती हैं कलियाँ,
फिर मटक-मटक, खिलती हैं पंखुड़ियां,
और लटक झूलती ये टहनियाँ,
उस ओर ही, भटक जाती है दुनियाँ!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

स्वर्णिम सा, हो उठता है क्षितिज,
सरोवर में, मुखरित हो उठते हैं वारिज,
खुश्बूओं में, वो ही हैं काबिज,
हर शै, होता उनसे ही परिभाषित!

लेकर आती है वो, कितनी ही सौगातें.......

उनकी बातें, उनकी ही धड़कन,
उनकी होठों का, कर्ण-प्रिय सा कंपन,
मधु-प्रिय, चूड़ी की खन-खन,
हर क्षण सरगम, लगता है आंगन!

ले आती है वो, कितनी ही सौगातें!
सुप्रिय रूप, कर्ण-प्रिय वाणी, मधु-प्रिय बातें!

Sunday, 17 June 2018

दो पग साथ चले

दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......

ख्वाब हजारों आकर मुझसे मिले,
जागी आँखों में अब रात ढ़ले,
संग तारों की बारात चले,
सपनों में अब मन को आराम मिले!

दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......

कब दिन बीते जाने कब रैन ढले,
उम्मीद हजारो हम बांध चले,
उस पथ मेरे अरमान चले,
तुमको ही हम अपना मान चले!

दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......

पथ उबड़-खाबड़ मखमल से लगे,
पग पग कितने ही फूल खिले,
ये ख्वाब हकीकत में ढ़ले,
कितनी ही जन्मों के सौगात मिले!

दो पग पथ पर तुम क्या मेरे साथ चले......

Thursday, 13 October 2016

सौगातें

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

अपने मन की तेज धार में उन्मुक्त बह जाने को,
मन ही मन खुल कर मुस्काने को,
गुजारे थे कुछ लम्हे मैनें संग जीवन के,
बस वो ही लम्हे हैं थाथी, मेरे बोझिल से जीवन के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

चढती साँसों की लय में दूर तक बह जाने को,
कंपन धड़कन की सुन जाने को,
बिताए थे कुछ लम्हे मैने एकाकीपन के,
बस वो लम्हे ही हैं साथी, मेरे जीवन की तन्हाई के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

दो नैनों की प्यासी पनघट में नीर भर लाने को,
करुणा के सागर तट छलकाने को,
गुजारे थे कुछ लम्हे मैने तुम बिन विरहा के,
बस वो लम्हे हैं काफी, नैनों से सागर छलकाने के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

Saturday, 5 March 2016

खुशियों का सौदागर

मैं खुशियों का व्योपारी, कहते मुझको सौदागर।

बेचता हूँ खुशियों की लड़ियाँ,
चँद पिघलते आँसुओं के बदले में,
बेचता हूँ सुख के अनगिनत पल,
दु:ख के चंद घड़ियों के बदले में।

सौदा खुशियों की करने आया मैं सौदागर।

सौदा मेरा है बस सीधा सरल सा,
सुख के बदले अपने दुख मुझको दे दो,
मोल जोल की भारी गुंजाईश इसमें,
जितना चाहो उतनी खुशियाँ मुझसे लो।

सौगात खुशियों की लेकर आया मैं सौदागर।

खुलती दुकान मेरी चौबीसो घंटे,
सौदा सुख का तुम चाहे जब कर लो,
स्वच्छंद मुस्कान होगी कीमत मेरी,
बदले में मुस्कानों की तुम झोली ले लो।

मैं खुशियों का व्योपारी कहते हैं मुझको सौदागर।

सुख दुख तो इक दूजे के संगी,
लेकिन संग कहाँ कहीं पर ये दिखते हैं,
इक जाता है तो इक आता है,
साथ साथ दोनो इस मन में ही बसते हैं।

सौगात जीवन की लेकर आया हूँ मैं सौदागर।

मन की दीवारों को टटोलकर देखो
सुख के गुलदस्ते अभी तक वहीं टंके हैं,
हृदय के अंदर तुम झाँककर देखो,
सुख का सौदागर तो रमता तेरे ही हृदय है।

ढ़ूंढ़ों तुम अपने हृदय में वही बड़ा है सौदागर।