Monday, 6 February 2017

कर्मवीर

पर मै कहता रहा तू कर्मवीर बन तकदीर क्या कर लेगी!

तपिश उस खलिश की,
तसव्वुर उन सुलगते लम्हों का,
डसती रही ताउम्र नासूर बन मुझको,
जबकि मुझको भी था पता,
छल किया है तकदीर ने मेरी मुझसे ही।

पर मै कहता रहा तू कर्मवीर बन तकदीर क्या कर लेगी!

जलन उस छल की,
ताप उस तकदीर की संताप का,
छलती रही ताउम्र दीदार देकर मुझको,
जबकि मुझको भी था पता,
छल रही हैं तकदीर आज भी मुझको ही।

पर मै कहता रहा तू कर्मवीर बन तकदीर क्या कर लेगी!

लगन मेरे कर्मनिष्ठा की,
करती रही मान मेरे स्वाभिमान का,
छल न सकी तकदीर आत्मसम्मान को मेरे,
जबकि मुझको भी था पता,
वश नही चलता तकदीर पर किसीका कहीं।

पर मै कहता रहा तू कर्मवीर बन तकदीर क्या कर लेगी!

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