Wednesday, 21 April 2021

समर

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

लहु-लुहान, यह रणभूमि,
पर, यह रण, अभी थमा नहीं,
निःशस्त्र हूँ, भले ही,
पर शस्त्र, हमने अभी, रखा नहीं,
हमने बांधा है सेहरा, ये समर है मेरा,
रक्त की, अंतिम बूँदों तक, 
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

ये पथ, हों जाएँ लथपथ,
होंगे और प्रशस्त, ये कर्म पथ,
लक्ष्य, समक्ष है मेरे,
छोड़ी है, ना ही, हमने राह अभी,
तुरंग मैं, कर्म पथ का, रण है ये मेरा,
साँसों की, अंतिम लय तक,
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

बाधाएं, विशाल राहों में,
पर, क्यूँ हो मलाल चाहों में,
भूलें ना, इक प्रण,
कर शपथ, छोड़ेंगे हम ना रण,
तोड़ेगे हर इक घेरा, समर है ये मेरा,
बाधा की, अंतिम हद तक,
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

33 comments:

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    1. विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  2. सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ,सराहनीय।
    वाह्ह्ह्ह्ह्ह! लाजवाब।
    सादर प्रणाम 🙏

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    1. विनम्र आभार आदरणीया आँचल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  3. सुंदर,सारगर्भित संदेशपूर्ण रचना ।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    1. विनम्र आभार आदरणीय शिवम जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-04-2021 को चर्चा – 4,044 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  6. हर एक का अपना समर होता है और अपनी ही युद्ध भूमि ... उसे कोई और नहीं लड़ सकता ... यही सन्देश मिल रहा . सुन्दर प्रस्तुति .

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    1. विनम्र आभार आदरणीया संगीता स्वरुप जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  7. "निःशस्त्र हूँ, भले ही,
    पर शस्त्र, हमने अभी, रखा नहीं,"

    इन पंक्तियों ने मुझे प्रेरित किया है कि समय कितनी भी दयनीय क्यों ना हो मुझे चलना है अपने मूल्यों पर ही।

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    1. विनम्र आभार आदरणीय प्रकाश जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  8. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2106...आँकड़ों को दबाने के आकाँक्षी हैं हम? ) पर गुरुवार 22अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  9. बहुत ही खूबसूरत और सारगर्भित संदेश पूर्ण रचना! 👌👌👌👌👌👏👏👏👏

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    1. विनम्र आभार आदरणीया मनीषा गोस्वामी जी। बहुत-बहुत धन्यवाद। स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया ज्योति देहलीवाल जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  11. आदरणीय सर, बहुत ही सशक्त प्रेरक रचना जो साकारात्मकता का संचार कर हमें संघर्ष से जीतने की प्रेरणा देती है।
    हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।

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    1. विनम्र आभार अनंता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  12. समर से भागना नहीं बल्कि उसका मुकाबला करना है, प्रेरणा देती पंक्तियाँ !

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    1. विनम्र आभार आदरणीया अनीता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    1. विनम्र आभार आदरणीय शास्त्री जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  14. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन सर।
    सादर

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    1. विनम्र आभार आदरणीया अनीता सैनी जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  15. बाधाएं, विशाल राहों में,
    पर, क्यूँ हो मलाल चाहों में,
    भूलें ना, इक प्रण,
    कर शपथ, छोड़ेंगे हम ना रण,
    तोड़ेगे हर इक घेरा, समर है ये मेरा,
    बाधा की, अंतिम हद तक,
    लड़ना है मुझको ही!👌👌👌👌👌👌

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रेणु जी।

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  16. बाहर के संघर्ष से इतर एक युद्ध खुद से भी लड़ता है प्रतिपल!! ये समर अघोषित है और खुद से ही लड़ा जा रहा है जिसे कोई देख नहीं देख सकता!

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    1. आपकी पारखी दृष्टि, रचना को एक नया आयाम दे गई।
      विनम्र आभार आदरणीया। ।।।

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  17. बहुत सुंदर रचना हैं भैया।

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