सुबह नहीं होती आजकल, ऐ मेरे मीत..
सुनता रहा रातभर, मैं दर्द का गीत,
निर्झर सी, बहती रही ये आँखें,
रोता रहा मन, देख कर हाले वतन,
संग कलपती रही रात, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
सह जाऊँ कैसे, उन आँखों के गम,
सो जाऊँ कैसे, ऐ सोजे-वतन,
बैचैन सी फ़िज़ाएं, है मुझको जगाए,
कोई तड़पता है रातभर, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
है दर्द में डूबी, वो आवाज माँ की,
है पिता के लिए, बेहोश बेटी,
तकती है शून्य को, इक अभागिन,
विलखती है वो बेवश, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
उस आत्मा की, सुनता हूँ चीखें,
गूंज उनकी, आ-आ के टोके,
प्रतिध्वनि उनकी, बार-बार रोके!
आह करती है बेचैन, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
न जाने फिर कब, होगा सवेरा?
क्या फिर हँसेगा, ये देश मेरा?
कब फिर से बसेगा, ये टूटा बसेरा?
कब चमकेंगी आँखें, ऐ मेरे मीत?
सुबह नहीं होती आजकल, ऐ मेरे मीत....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
सुनता रहा रातभर, मैं दर्द का गीत,
निर्झर सी, बहती रही ये आँखें,
रोता रहा मन, देख कर हाले वतन,
संग कलपती रही रात, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
सह जाऊँ कैसे, उन आँखों के गम,
सो जाऊँ कैसे, ऐ सोजे-वतन,
बैचैन सी फ़िज़ाएं, है मुझको जगाए,
कोई तड़पता है रातभर, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
है दर्द में डूबी, वो आवाज माँ की,
है पिता के लिए, बेहोश बेटी,
तकती है शून्य को, इक अभागिन,
विलखती है वो बेवश, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
उस आत्मा की, सुनता हूँ चीखें,
गूंज उनकी, आ-आ के टोके,
प्रतिध्वनि उनकी, बार-बार रोके!
आह करती है बेचैन, ऐ मेरे मीत!
सुबह नही होती आजकल.....
न जाने फिर कब, होगा सवेरा?
क्या फिर हँसेगा, ये देश मेरा?
कब फिर से बसेगा, ये टूटा बसेरा?
कब चमकेंगी आँखें, ऐ मेरे मीत?
सुबह नहीं होती आजकल, ऐ मेरे मीत....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बेहद मर्मस्पर्शी रचना वीरों को शत् शत् नमन 🙏
ReplyDeleteये व्यथा के आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteहृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteये व्यथा के आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....
ReplyDeleteवीर शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
ये व्यथा के आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteनमन वीर शहीदों को |
ReplyDeleteसादर
ये व्यथा के आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteनमन है देश के सैनिकों को ...
ReplyDeleteशब्दों के उदगार नहीं नीर हैं ये ...
ये व्यथा के ही आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteआदरणीय पुरुषोत्तम जी -- बहुत ही सार्थकता से आपने उस वेदना को लिखा है जिससे पूरा देश व्यथित है | हर कोई निर्दोष वीरों की शाहदत पर स्तब्ध है | उनके परिवारों की वेदना हर मन को बींध गयी |उन वीरों के लिए बस नमन और वन्दन | और उनके परिवारों में जो रिक्ति ई है उसके लिए कोई सांत्वना पर्याप्त नहीं बस समय ही मरहम है | सादर साधुवाद |
ReplyDeleteये व्यथा के आँसू हैं शहीद परिवारों के लिए।
Deleteहर कोई बाॅर्डर पे नहीं लड़ सकता पर अपनी भावनओं को व्यक्त कर उनके लिए सम्मान जरूर अर्पित करते हैं।
ReplyDeleteसुनता रहा रातभर, मैं दर्द का गीत,
निर्झर सी, बहती रही ये आँखें,...
दुखद घड़ी है यह,आदरणीय प्रकाश जी।
Deleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचना पुरुषोत्तम जी ।नमन उन वीर शहीदों को 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय । देश के हालात और हालत, ऐसी पहले न थी।
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