Tuesday 31 August 2021

पीछे छूटा क्या

कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!

वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
सावन था, या इक घन था,
विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
विस्मित करता, वो हर क्षण था!

कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!

वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
यौवन में डूबा, इक तन था,
इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
कंपित होता, हर इक कण था!

कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या!

वो आशाओं का, अवलोकन था,
अदृश्य भाव का, दर्शन था,
भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
विह्वल सा, वो आकुल मन था!

कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
कितना, टूटा क्या!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

15 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 31 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-09-2021) को चर्चा मंच   "ज्ञान परंपरा का हिस्सा बने संस्कृत"  (चर्चा अंक- 4174)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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  3. बहुत सुन्दर
    स्पर्शी।

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  4. वो आशाओं का, अवलोकन था,
    अदृश्य भाव का, दर्शन था,
    भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
    विह्वल सा, वो आकुल मन था!
    सुंदर भाव प्रवण सृजन ।
    हृदय स्पर्शी।

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  5. वो आशाओं का, अवलोकन था,
    अदृश्य भाव का, दर्शन था,
    भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
    विह्वल सा, वो आकुल मन था!


    सुंदर मन को छूती रचना...

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  6. पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा की रचना 'कोई, क्या जाने, पीछे छूटा क्या!
    कितना, टूटा क्या!

    वो वृक्ष घना था, या इक वन था,
    सावन था, या इक घन था,
    विस्तृत जीवन का, लघु आंगन था,
    विस्मित करता, वो हर क्षण था!
    अतीत को कुरेद दबे पाँव निकल जाती है।

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  7. वो बचपन था, या अल्हड़पन था,
    यौवन में डूबा, इक तन था,
    इक दर्पण था, या, मेरा ही मन था,
    कंपित होता, हर इक कण था!

    सच, कोई क्या जाने, पीछे छूटा क्या.....आगे बढ़ते-बढ़ते जब एक पल के लिए रुक पीछे देखते हैं तो ये हुक तो उठती ही है,क्या-क्या छोड़ आये हम...
    हृदयस्पर्शी सृजन,सादर नमन

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  8. वो आशाओं का, अवलोकन था,
    अदृश्य भाव का, दर्शन था,
    भावप्रवण होता, गहराता क्षण था,
    विह्वल सा, वो आकुल मन था....अतिसुन्दर

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