ले हल्दियों से रंग, गुलमोहर संग,
लगी झूलने फिर, शाखें अमलतास की!
छूकर बदन, गुजरने लगी, शोख सी पवन,
घोलकर हवाओं में, इक सौंधी सी खूश्बू,
गीत कोई सुनाने लगी, भोर की पहली किरण,
झूमकर, थिरकने लगा वो गगन!
ले किरणों से रंग, गुलमोहर संग,
लुभाने लगी मन, शाखें अमलतास की!
कर गईं क्या ईशारा, ले गई मन ये हमारा,
उड़ेलकर इन नैनों में, पीत रंग प्रेम का,
रिझाने लगी, झूल कर शाखें अमलतास की,
बात कोई, कहने लगी हर पहर!
ले सरसों सा रंग, गुलमोहर संग,
गुन-गुनाने लगी, शाखें अमलतास की!
पट चुकी, फूलों से, हर तरफ, राह सूनी,
मखमली सेज जैसे, बिछाई हो उसने,
दे रही निमंत्रण, कि यहीं पर, रमा लो धूनी,
अब, वश में कहां, ये अधीर मन!
ले सपनों सा रंग, गुलमोहर संग,
बुलाए उधर, वो शाखें अमलतास की!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा (सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-02-2022) को चर्चा मंच "भँवरा शराबी हो गया" (चर्चा अंक-4343) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया आभार आदरणीय
Deleteमन मुग्ध करने वाला प्रकृति का बहुत ही खूबसूरत चित्रण!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर😍💓
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया मनीषा जी
Deleteबासंती पवन सी गुनगुनाती सुंदर कविता ।
ReplyDeleteइस ऋतु की ढे़रों शुभकामनाओं सहित आभार।।।।
Deleteखूबसूरत रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteउम्दा कृति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय मनोज कायल जी।
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