Sunday, 5 November 2023

नन्हीं दीप


हो चला एहसास, बंध चली उम्मीद,
मद्धिम सी जल रही, यूं कहीं,
नन्हीं सी, इक दीप!

यूं तो कम न थे, झौंके,
उमरते धूल, और चुभते शूल राह के,
दबी सी इक घुटन,
खौफ, उन अंधेरों के!
पर कहीं, जलकर हौसला देती रही,
नन्हीं सी, इक दीप!

खोए, उजालों में कहीं,
हर नजर, ढूंढ़ती है अपनी ही जमीं,
टूटे वो सारे सपने,
बिखरे, नैनों की नमीं!
पर, छलके प्यालों संग, जलती रही,
नन्हीं सी, इक दीप!

विलगते, सांझ के साए,
बिछड़ते, मद्धम रात के वो सरमाए,
टूटे तारों सा गगन,
कौन सिमेट कर लाए!
पर, जलती रही, मन की गलियों में,
नन्हीं सी, इक दीप!

हो चला एहसास, बंध चली उम्मीद,
मद्धिम सी जल रही, यूं कहीं,
नन्हीं सी, इक दीप!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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