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Wednesday, 19 July 2017

कभी

कभी गुजरना तुम भी मन के उस कोने से,
विलखता है ये पल-पल, तेरे हो के भी ना होने से...

कुछ बीत चुके दिन सा है...
तेरा मौजूदगी का अनथक एहसास!
हकीकत ही हो तुम इक,
मन को लेकिन ये कैसे हो विश्वास?
कभी चुपके से आकर मन के उस कोने से कह दो,
इनकी पलकों से ये आँसू यूँ ही ना बहने दो।

माना कि बीत चुका कल ....
फिर वापस लौट सका है ना मुड़कर,
पर मन का ये गुमसुम सा कोना,
अबतक बैठा है बस उस कल का होकर,
कहता है ये, वो गुजरा वक्त नहीं जो फिर ना आएंगे,
वापस मेरी गलियों में ही वो लौट कर आएंगे।

कल के उस पल में था जीवन...
नृत्य जहाँ करते थे जीवन के हर क्षण,
गूँज रही है अब तक वो तान,
रह रह कर गीत वही दोहराता है वो कोना,
सांझ ढले, दोबारा धुन वही सुनने को तुम आ जाना,
कोई बहका सा सुर बहकी साँसों में भर जाना।

यूँ गुजरना तुम कभी मन के उस कोने से,
विलखता है ये पल-पल, तेरे हो के भी ना होने से...

Wednesday, 2 November 2016

कभी तुम लौट आओ

तुम लौट आओ.....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

कभी लगता है मुझको,
जैसे हर चेहरे में छुपा है तेरा अक्श,
क्यूँ  तेरी चाहत में मुझको,
प्यारा सा लगता है हर वो इक शक्श,
ले चला है भरभ किस ओर मुझको,
राहत मिलता नही कहीं दिल को....

तुम लौट आओ....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

कभी देखता हूँ मैं फिर,
आँखों मे मंडराता इक धुंधला सा साया,
क्यूँ लगने लगता है फिर,
स्मृतिपटल पर छाई है तिलिस्म सी माया,
लहरों सी वो फिर उफनाती,
उद्वेलित इस स्थिर मन को कर जाती....

तुम लौट आओ....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

तभी सोचता हूँ फिर मैं,
वो अक्श तो मिल चुकी वक्त की खाई में,
क्यूँ फिर भरम में हूँ मैं,
किस साए से मिलता हूँ रोज तन्हाई में,
किसी कोहरे में उलझा हूँ शायद मैं,
बिखरा है ये मन भरम के किस बादल में ......

तुम लौट आओ....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

कभी लगता है तब,
यादों के ये उद्वेग होते है बड़े प्रबल,
क्यूँ याद करता है इन्हे मन जब,
असह्य पीड़ा देते है ये जीने के संबल,
पर यादों पर है किसके पहरे,
चल पड़ता हूँ उस ओर जिधर ये यादें चले,

तुम लौट आओ....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

कभी पूछता हूँ मैं फिर,
झकझोरा है मेरे स्मृतिपटल को किसने,
क्यूँ अंगारों को सुलगाया है फिर,
तन्हा लम्हों को फिर उकसाया है किसने,
पानी में पतवार चली है फिर क्यूँ,
यादों की ये तलवार खुली है फिर क्यूँ,

तुम लौट आओ....तुम लौट आओ.....कभी तुम..

Thursday, 28 April 2016

खालीपन अब संग

मैं और मेरा खालीपन, अब दोनो ही रहते हैं संग!

कभी-कभी अजीब सा खालीपन,
गहराता मन के अन्दर,
जैसे सायों सा लहराता है,
अंधियारा स्याह रातों के भीतर।

उथला सा ये मन कब तक सह पाए,
कौन भरे मन का खालीपन,
मन बोलता है मन से,
आँखें मीचे मन बस सुनता ही जाए।

मन का खालीपन एहसासों का भूखा,
कोई तो जग में होता,
जो मन के एहसासों को सुनता,
ये खालीपन खुद मे ही खुद को ढूंढ़ता।

मैं और मेरा खालीपन अब दोनो हैं संग,
कभी-कभी मिल बैठते हम निर्जन में,
ठिठकता तब मेरा एकाकीपन,
फिर लगा लेता तब वो मुझको अपने अंग।

मैं और मेरा खालीपन, अब दोनो ही रहते हैं संग!

Monday, 14 March 2016

अभी अभी, कभी कभी

कह गए क्या तुम मुझे कुछ अभी अभी,
महसूस सी हो रही स्वर तुम्हारी दबी दबी,
कह न पाए जो जुबाने बात कोई कभी कभी,
बात ऐसी कह दी मुझको शायद तूने अभी अभी।

अभी अभी तो जल रही थी आग सी,
दबी दबी सी सुलग रही मन की ताप भी,
कभी कभी तो ऐसे मे लगे हैं जाते दाग भी,
अभी अभी तो बारिशों के होने लगे आसार भी।

निखर गए है कलियों के मुखरे अभी अभी,
जल उठे हैं दीप झिलमिल दिल में कोई दबी दबी,
होता अक्सर प्यार में क्या सिलसिला ये कभी कभी,
दरमियाँ दिलों के फासले थे कमने लगे है अभी अभी।