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Monday 18 April 2016

अब कोई इन्तजार नहीं

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

बँधी थी उम्मीद की हल्की सी इक डोर,
कुछ छाँव सी महसूस होती थी गहराती धूप में भी,
मंद-मंद बयार चल जाती थी यादों की हर पल,
कानों मे अब गुंजता है सन्नाटा चीरता इक शोर....,

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

हजार सपनों संग बंधी थी जीवन की डोर,
तन्हाई मादक सी लगती थी उन यादों की महफिल में,
धड़क जाता था दिल इक हल्की सी आहट में,
जेहन में अब घूमता है विराना सा अंतहीन छोर.....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

सँवरता था कभी वक्त, मदभरी बातों के संग,
सिलसिले थे शामों के तब, उन खिलखिलाहटों के संग,
मिश्री सी तरंग तैरती थी गुमशुदा हवाओं में तब,
कहीं गुमशुम वो आवाज, क्युँ है अब खामोश दौर....

अब कोई इन्तजार नहीं करता वहाँ उस ओर......

Monday 11 April 2016

मूक प्राण

मूक प्राणों के निर्णय क्या ऐसे तय होते हैं जीवन में?

गुमसुम सी सजनी वो हाथों में मेंहदी रचकर,
इक सशंक जिज्ञासा पलती मन के भीतर,
अपरिचित सी आहट हर पल मन के द्वारे पर,
क्या वो हल्दी निखरेगी सजनी के तन पर?

द्वार हृदय के बरबस खोल रखें हैं उस सजनी नें,
कठिन परीक्षा देनी है उसे इक अनजाने को,
अपनेपन की परिभाषा इक नई लिखनी है उसको,
क्या वो अपरिचित अपनाएगा उस भाषा को?

मुक्ति भाव खोए से है सजनी की जड़ आँखों में,
भविष्य धुमिल है उसकी घनघोर कुहासों में,
पाँव थमें है स्तंभ शेष से, असमंजस है उसके मन में,
क्या मूक प्राणों के निर्णय ऐसे होते हैं जीवन में?