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Sunday 20 December 2015

एक कतरा आँसू

एक कतरा आँसू
जो छलक गए नैनों से,
जो देखी दुनिया की बेरुखी,
सिमट गए फिर उन्ही नैंनों मे।

आसू के जज्बात यहां समझे कौन,
अपनी-अपनी सबकी दुनियां,
सभी है खुद में गुम और मौन,
ज्जबातो की यहां सुनता कौन।

बंदिशे हैं सारी जज्बातों पर,
कोमलताएं कही खो चुकी हैं
बेरुखी के सुर्ख जर्रों में,
आँसूं भी अब सोचते बहूं या सूख ही जाऊं...!