धवलित है ये रात, हम हैं तैयार चलो....
कहते थे तुम, चाँद के पार चलो,
अब है हम तैयार चलो,
चाँद के पीछे ही कहीं, तुम आन मिलो,
चलो, अब रह जाएँ वहीं,
यूं, छुप जाएँ कहीं,
अब तो, चाँद के पार चलो...
विचलित है ये रात, हम हैं तैयार चलो....
तारे हैं वहीं, ख्वाब सारे हैं वहीं,
ये सपन, हमारे हैं वहीं,
बहकी है ये कश्ती, अब सहारे हैं वहीं,
दुग्ध चाँदनी सी है रात,
ले, हाथों में हाथ,
संग मेरे, चाँद के पार चलो...
विस्मित है ये रात, हम है तैयार चलो....
वो थी, अधूरी सी इक कहानी,
इस दुनियाँ से, बेगानी,
सिमटती थी जो, किस्सों में कल-तक,
बिखरे हैं, वही जज्बात,
उम्र, का हो साथ,
संग-संग, चाँद के पार चलो...
धवलित है ये रात, हम है तैयार चलो....
(चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से प्रभावित रचना)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
कहते थे तुम, चाँद के पार चलो,
अब है हम तैयार चलो,
चाँद के पीछे ही कहीं, तुम आन मिलो,
चलो, अब रह जाएँ वहीं,
यूं, छुप जाएँ कहीं,
अब तो, चाँद के पार चलो...
विचलित है ये रात, हम हैं तैयार चलो....
तारे हैं वहीं, ख्वाब सारे हैं वहीं,
ये सपन, हमारे हैं वहीं,
बहकी है ये कश्ती, अब सहारे हैं वहीं,
दुग्ध चाँदनी सी है रात,
ले, हाथों में हाथ,
संग मेरे, चाँद के पार चलो...
विस्मित है ये रात, हम है तैयार चलो....
वो थी, अधूरी सी इक कहानी,
इस दुनियाँ से, बेगानी,
सिमटती थी जो, किस्सों में कल-तक,
बिखरे हैं, वही जज्बात,
उम्र, का हो साथ,
संग-संग, चाँद के पार चलो...
धवलित है ये रात, हम है तैयार चलो....
(चंद्रयान-2 के सफल प्रक्षेपण से प्रभावित रचना)
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत ही सुन्दर सृजन सर
ReplyDeleteसादर
सादर आभार आदरणीय
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-07-2019) को "उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वो थी, अधूरी सी इक कहानी,
ReplyDeleteइस दुनियाँ से, बेगानी,
सिमटती थी जो, किस्सों में कल-तक,
बिखरे हैं, वही जज्बात,
उम्र, का हो साथ,
संग-संग, चाँद के पार चलो...
वाह !!!!!!!! प्रेम का तिलस्म रचती , जादुई कल्पना से सजी स्नेहिल रचना आदरनीय पुरुषोत्तम जी | काश!चन्द्रयान 2 के साथ ऐसी सुखद यात्रा भी प्रेमियों के लिए सुलभ हो जाए | सादर --
आदरणीया रेणु जी, ब्लॉग पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें ।
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