विह्वल होकर जो सिसक पड़े है,
हैं तेरी यादों के वो नीर।
भावप्रवण जो फफक पड़े है,
अधरों पर जो बरस पड़े हैं
है तेरी यादों के वो जंजीर।
इन भावों से है गहराता सागर,
चखा है जिनको इन अधरों ने,
ये हैं तेरी प्यास के अधीर।
नीर नहीं ये, हैं नीरव अमृत,
पीता जाऊँ मैं इसको जीवनभर,
है जीवन तेरी आस का पीर।
चखा है अमृत अधरों ने पर,
अब भी बाकी प्यास हमारी,
नैनों से अविरल बह जाने को,
विह्वल नीर ने फिर कर ली तैयारी।