तुम अविरल अश्रुधार पोछ नही पाओगी!
एक अश्रु-धार नभ से होकर आती,
रुकती कहाँ सुनती कहाँ ये मन की,
निर्झर सी बस आँखों से बह जाती।
तुम अश्रुओं की भाषा पढ़ नही पाओगी!
अश्रु-धार बन कहती प्रेम की भाषा,
वेदना हृदय के आँखों से कह जाती,
थम जाती नैनों में ओस की बुंदों सी।
तुम कोलाहल अश्रुधार की सुन नही पाओगी!
सजते नैन सजल अश्रुधार अविरल,
सागर मंथन से ज्यों निकलता गरल,
हलाहल मन में क्यूँ जब नैन सजल?
तुम मंथन गरल नैनों की पी नही पाओगी!
नैन गरल पीकर अमरत्व पा जाऊँ,
सजल नैन नित्य अश्रुधार ले आऊँ,
निर्झर नैनों में प्रीत सदा भर जाऊँ।
तुम अमरत्व नैन गरल की पा नही पाओगी!