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Saturday 16 January 2016

विपरीत रेखाएँ

आज फिर गहराई से देखा हमनें हाथो को,
मध्य अवस्थित दो समानांतर रेखाओं को,
मेरा विवेक मजबूर हो गया पुनःविचार को,
मस्तिष्क व हृदय रेखा जाती विपरीत क्युँ?

शायद मष्तिष्क सोचता है हृदय के विपरीत,
मष्तिष्क का निर्णय विवेचनाओं पर आश्रित,
हृदय का निर्णय होता संवेदनाओं पर केन्द्रित,
दो विपरीत विचार-धाराएँ एक जगह स्थित!

दो विपरीत धाराएँ मिलके चलाती जीवन एक 
सामंजस्य द्वारा जीवन के निर्णय लेता अनेक,
तीसरी रेखा जीवन की चल पाती इनके विवेक,
रेखाओं का सम्मेलन बस करता मालिक एक!

Wednesday 13 January 2016

हाथों की रेखाएँ

चकित भाव से रह-रह वो देखता,
हाथों को रेखाओं को और सोचता,
क्या वश में है मेरी भाग्य रेखा?
क्या आज शेष बची है जीवन रेखा?

रेखाएँ मस्तिस्क की भी होती हाथों मे,
हृदय रेखा भी कुछ आरी-टेढ़ी,
फिकर कहाँ हृदय, मस्तिस्क रेखा की,
मति मस्तिस्क की खुद ही है खोई,
क्या देख पाएगा वो मस्तिस्क की रेखा?

वो वश करना चाहता रेखाओं में,
व्योम के तारे, वसुधा के सारे धन,
पर फिकर कहाँ मन के तम की,
मन तो खुद ही स्वप्न मे खोया,
क्या तोड़ बंध बना सकेगा प्रभा रेखा?

भाग्य,जीवन गर करना हो वश मे,
ज्योति वृत्त बना पथ वश में करो तुम,
चलो जहाँ मन, मस्तिस्क, प्राण चलते हैं,
संकल्प करो सोए मस्तिष्क जगा तुम,
क्या वश कर सकेगा तू जीवन भाग्य रेखा?