जगाए हैं किसने, दिन ये ख्वाहिशों वाले!
बन गई, सपनों की, कई लड़ियां,
खिल उठी, सब कलियां,
गा रही, सब गलियां,
कौन लाया, बारिशों के ये सर्द उजाले!
दिन ये ख्वाहिशों वाले!
जगाए हैं किसने......
अब तलक, सोए थे, ये एहसास,
ना थी, होठों पे ये प्यास,
न रंग, ना ही रास,
जलाए है किसने, मेरी राहों पे उजाले!
पल ये ख्वाहिशों वाले!
जगाए हैं किसने......
रंग जो अब छलके, पग ये बहके,
छू जाए कोई, यूं चलके,
ज्यूं ये पवन लहके,
लिए कौन आया, भरे रंगों के ये हाले!
क्षण ये ख्वाहिशों वाले!
जगाए हैं किसने, दिन ये ख्वाहिशों वाले!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (०७-०५-२०२३) को 'समय जो बीत रहा है'(चर्चा अंक -४६६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteBahut hi sundar rachna
ReplyDeletethanks for sharing This post