जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!
आवश्यक है, इक अंतरंग प्रवाह,
लघुधारा के, नदी बनने की अनथक चाह,
बाधाओं को, लांघने की उत्कंठा,
जीवंतता, गतिशीलता, और,
थोड़ी सी, उत्श्रृंखलता!
गर, धारा से धारा ना जुड़ पाए,
नदी कहाँ बन पाए!
कुछ सपने, पल जाएँ, आँखों में,
पल भर, हृदय धड़क जाए, जज्बातों में,
मन खो जाए, उनकी ही बातों में,
कण-कण में हो कंपन, और,
थोड़ी सी, विह्वलता!
गर, दो धड़कन ना मिल पाए,
सृष्टि, कब बन पाए!
विरक्ति, उत्तर नहीं इस प्रश्न का,
जीवन से विलगाव, राह नहीं जीवन का,
पतझड़, प्रभाव नहीं सावन का,
आवश्यक इक, मिलन, और,
थोड़ी सी, मादकता!
जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 02-05-2021) को
"कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।" (चर्चा अंक- 4054) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
आभार आदरणीया मीना भारद्वाज जी
Deleteवाह।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय शिवम जी।
Deleteवर्तमान में सबों की कुछ-कुछ ऐसी ही स्थिति है । अनुत्तरित प्रश्न सा ...
ReplyDeleteजी अमृता जी! एक संवेदनशील प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ। ।।।
Deleteजीवन से, गर जीवन छिन जाए,
ReplyDeleteकौन, किसे बहलाए!
बहुत सुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मनोज जी।
Deleteउत्तम रचना बधाई हो आपको आदरणीय 🌷
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया
Deleteसराहनीय प्रस्तुति
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय ओंकार जी।
Deleteविरक्ति, उत्तर नहीं इस प्रश्न का,
ReplyDeleteजीवन से विलगाव, राह नहीं जीवन का,
पतझड़, प्रभाव नहीं सावन का,
आवश्यक इक, मिलन, और,
थोड़ी सी, मादकता!
सृष्टि के लिए आसक्ति का होना ज़रूरी । सुंदर रचना ।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी।
Deleteकुछ सपने, पल जाएँ, आँखों में,
ReplyDeleteपल भर, हृदय धड़क जाए, जज्बातों में,
मन खो जाए, उनकी ही बातों में,
कण-कण में हो कंपन, और,
थोड़ी सी, विह्वलता!
गर, दो धड़कन ना मिल पाए,
सृष्टि, कब बन पाए!
भावपूर्ण प्रस्तुति पुरुषोत्तम जी। विरक्ति से जीवन के रंग फीके पड़ने तय हैं। उमंग भरे जीवन के लिए आसक्ति और अनुराग जरूरी है। सादर 🙏🙏
जी हाँ, सृष्टि की सृजनात्मकता का आधार बना रहे।
Deleteविनम्र आभार आदरणीया। ।।