Monday, 17 March 2025

घुलते पल

सिमटा सा, रहता ये पल,
कैसे न हो मन विकल,
विलंबित वो पल, गूंजते हर पल,
आलाप, उस पल का, 
ठहरा-ठहरा सा!

विस्तार लेता, समय का आंगन,
आतुर हो, थामे हर दामन,
फिक्र कहां, देखें लम्हों को मुड़ कर,
क्या बीती, किसके मन पर,
बह जाए, इन्हीं लहरों पर,
हर मंजर, 
रह जाए, बस कंकड़, 
बिखरा-बिखरा सा!

लगता ये पल, सिमटा सा,
किंतु, कंपित हर पल, 
अवलंबित हर पल, बीते पल पर,
मुखड़ा, हर इस पल का, 
टुकड़ा-टुकड़ा सा!

गुजरे वो कल, वो यादों के क्षण,
हर पल भिगोए, ये दामन,
जगाए कभी, नींद से झकझोर कर,
रख दें, टुकड़ों को जोड़कर,
उन्हीं लहरों को, मोड़कर,
लाए इधर,
भिगोए, जमीं ये बंजर,
रुखरा-रुखरा सा!

सिमटा सा, कहता ये पल,
चल, यादों से, निकल,
गुंजित वो पल, कर न दे विकल,
लम्हा, हर उस पल का, 
ठहरा-ठहरा सा!