धुआं, खुद ही छट जाएगा,
हट जायेगा, धुंध,
रख कर, खुद को अलग,
इस आग को, होने दीजिए, स्वतः सुलग,
फूटेगी इक रोशनी,
अचानक ही, सब होगा स्पष्ट...
न रोकिए, अचानक ही होने दीजिए!
स्वतः, जम जाते हैं कोहरे,
कोहरों का क्या?
उमड़ते रहते हैं ये बादल,
बूंदें स्वतः ही संघनित होती है हवाओं में,
सुलगेगी जब आग,
अचानक ही, सब होगा स्पष्ट...
न रोकिए, अचानक ही होने दीजिए!
धुंधली ना हो जाए यकीन,
जरा दो भींगने,
विश्वास की सूखी जमीं,
बरसने दो बादलों को, हट जाने दो नमीं,
उभरने दो आकाश,
अचानक ही, सब होगा स्पष्ट...
न रोकिए, अचानक ही होने दीजिए!
कभी, मन को भी कुरेदिए,
ये परतें उकेरिए,
दबी मिलेंगी, कई चाहतें,
उभर ही उठेंगी, कोमल पलों की आहटें,
बज उठेगा संगीत,
अचानक ही, सब होगा स्पष्ट...
न रोकिए, अचानक ही होने दीजिए!
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