और आज, फिर, नीरवता है फैली!
भुलाए न भूले, वे छलावे, वे झूले,
झूठे, बुलावे, वो कल के,
सांझ का आंगना,
हँसते, तारों की टोली!
और आज, फिर, नीरवता है फैली!
रंगीन वो क्षितिज, कैसी गई छली!
उसी दिन की तरह, फिर,
फैले हैं रंग सारे,
पर, फीकी सी है होली!
और आज, फिर, नीरवता है फैली!
सोए वे ही लम्हे, फिर उठे हैं जाग,
फिर, लौटा वो ही मौसम,
जागे वे शबनम,
बरसी बूंदें फिर नसीली!
और आज, फिर, नीरवता है फैली!
फिर आज, भीग जाएंगी, वो राहें,
खुल ही जाएंगी, दो बाहें,
सजाएंगी सपने,
वे दो पलकें अधखुली!
और आज, फिर, नीरवता है फैली!